मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

अंतर्राष्ट्रीय काल्स सस्ते रेट में

आज घूमते घूमते हम पहुचे एक ऐसे वेबसाइट पर जहा अंतर्राष्ट्रीय काल्स करना बेहद सस्ता है । नही जानता हु की इंडिया से ये कितना प्रयौग होता है ।
आप इस वेबसाइट पर जाकर काल्स सस्ते में कर सकते है , ऐसा इस वेबसाइट का दावा है । http://www.rebtel.com/en/Home/
वैसे एस्कीपी (SKPE) ने इन्टरनेट काल्स पर अपना प्रभुत्व पहले ही जमा रखा है , जहा से आप बिल्कुल फ्री में इंटरनेशनल कॉल कर सकते है । इसको जान ने के लिए यहाँ क्लिक करे ।
http://www।skype.com/intl/en/
याहू भी ये सर्विस फ्री में देता है ।इसको जान ने के लिए यहाँ क्लिक करे ।
http://messenger।yahoo।com/features/voice/

आजमाए और हमे भी बताइए ।

रविवार, 14 दिसंबर 2008

वर्ड वेरिफिकेशन कैसे हटायें ?

ये वर्ड वेरिफिकेशन बड़ा ही फालतू चीज़ है । जब भी हम या आप किसी जगह कमेंट्स लिखना चाहते है ये आड़े आ जाता है

इसे हटाने का तरीका बहुत ही आसान सा है,इसके लिए आप अपने ब्लॉग के डैशबोर्ड (dashboard) में जाएँ, फ़िर settings, फ़िर comments, फ़िर { Show word verification for comments? } नीचे से तीसरा प्रश्न है ,उसमें 'yes' पर tick है, उसे आप 'no' कर दें और नीचे का लाल बटन 'save settings' क्लिक कर दें। बस काम हो गया.

और ज्यादा जानने के लिए राजीव गुरु की साइट पर देखे।

गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

मुंबई आतंकी हमलों में बच निकलने वाले से कुछ टिप्स

राहुल वेल्डे जो Unilever के लिए काम करता है वो भाग्यशाली है कि 26 नवम्बर के मुंबई आतंकी हमलों में बचकर निकल पाया. उनके बारे मे ईक अखबार इंटरव्यु निकला था. राहुल ने उसमे कुछ ठोस और उपयोगी टिप्स दिये है , ये मुझे बहुत अछ्छा लगा. वो सवेरे के 4 बजे बचकर निकल पाया. उनका कहना है कि ये आतंकी हमला शायद खत्म हो गया है, किंतु हम एक एसे अनिशचित समय मे जी रहे जिसमे इक सामान्य स्तर की जागरूकता बहुत जरुरी है । प्रस्तुत है कुछ टिप्स राहुल की तरफ़ से :
दार्शनिक टिप्स :
अपने परिवार और मित्रो का मूल्य जानिए । अपना समय उनके साथ व्यतीत करे । आपके पास जो भी है उसमे अपने हर चेतन क्षण को जीना सीखे, हँसते रहे , मुस्कुराते रहे और ख्याल रखे । मै उन मोमबत्ती यात्राओ और शान्ति यात्राओ के बारे में सुन रहा हु । पुलिस का बल और राजनीती का बल भी देख रहा हु। इसमे मै इतना तो निश्चित हु की बहुत सारी उर्जा नष्ट होगी । वह रह कर इतना तो कह सकता हु की उनमे से हर एक - पुलिसवाला , आग निरोधक वाले फायरमन, डॉक्टर , सामान्य जन , सभी, जितना कर सकते थे , कर रहे थे । मै किसी को दोषारोपण नही कर रहा हु । भगवान् महान है ।
प्रैक्टिकल टिप्स :
1 ये निश्चित करे की आपके पास पर्याप्त बीमा है। यदि आप के पास बहुत पैसा और साधन है फ़िर भी इसे करे ।
२ ये निश्चित कर की आपका परिवार आपके कुछ जरुरी चीजों का विवरण मालुम रहे , जैसे - बैंक अकाउंट , आपका निवेश, आदि। इन सब चीजों का विवरण रजिस्टर आपके जीवन साथी और निकट के संबंधियों के पास भी रखे ।
३ जब कभी भी आप होटल या किसी नए जगह पर हो तो फायर निकास (fire exit) को देख ले। इसी ने मेरी जान बच पाए थे ।
४ कोशिश कर की अपना कमरा बाहरी परिधि पर ले जहा से फायर ब्रिगेड आप तक पहुच सके । मेरा कमरा अन्दर की तरफ़ था जहा फायर ब्रिगेड कभी नही पहुच सकता था ।
५ हमेशा फिट रहे , ताकि कभी भी भाग सके । ये आपकी या किसी और की जिंदगी बचने के काम आ सकता है ।
६ आपके बचाओ के हथियार में आपका मोबाइल फ़ोन बहुत काम आ सकता है । अपनी बैटरी को बचाए । ज्यादातर हम इस बात का इंतज़ार करते है की कब बैटरी ख़तम हो और तब फ़िर चार्ज किया जाए । कभी न करिए। हमेशा इसे चार्ज रखे ।
मैंने पहली बार सीखा की जब भी कभी आप आग या धुएं के बीच दौडे , तब अपने चारो तरफ़ भीगा हुआ कम्बल लपेट ले और झुक कर दौडे । ये एक अलग बात है की मैंने अपने कम्बल को पुरा नही पहना था क्युकी मुझे लगता था की पुलिस मुझे आतंकी समझ कर मार न दे ।
आशा है आपको राहुल के ये टिप्स पसंद आयगे। जरुर बताइए

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

क्या आप अपने मोबाइल के काल से परेशान है ?

क्या आप रोज रोज की आने वाली बेकार की कालो से परेशान है ? ये टेलेमार्केटिंग वाले न समय देखते है और न वक्त । सवेरे सवेरे जब आप भरी बस के झक झक के बीच होते है तब आपका फ़ोन खनखनाता है और उधर से आवाज आती है " सर ये फला फला कंपनी है और एक विशेष आफर के तहत आपको चुना गया है " । मन करता होगा के कितनी गालिया दे पर वो भी नही कर सकते ( क्योकि उधर वाला या वाली बड़े ही तहजीब से बात करता है )।

आईये आपकी मुश्किल आसान कर देते है । इस सम्बन्ध में टेलीफोन नियामक प्राधिकरण का नियम बहुत ही सहायक है । अगर आप इन "बिन बुलाये कालो " (unsolicicited commercial calls - UCC) के परेशान है तो ये करे :-

१आप अपना मोबाइल या टेलीफोन नम्बर नेशनल -डू-नाट - काल रजिस्ट्री ( National Do not Call Registery) पर दर्ज करिए । इसके लिए बस कॉल करे या sms करे 1909 पर । sms करे "START DND" ।

२- यदि इस सेवा में रजिस्टर करने के ४५ दिनों बाद भी आपको ऐसे काल्स फ़िर भी मिलते है तो आप शिकायत को अपने टेलीफोन सेवादाता से कर सकते है ।

३ - इस बारे में ज्यादा जानकारी http://ndncregistry.gov.in/ndncregistry/index.jsp पर उपलब्ध है ।

४ - TRAI के और भी जानकारी http://www.trai.gov.in पर पा सकते है ।

५ - समस्या का फ़िर भी समाधान न होने पर आप राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्प लाइन पर कॉल कर सकते है जो की मुफ्त है 1800 11 ४००० (9 30 से 5 ३० बजे तक - सोमवार से शनिवार )।

क्यों है न आच्छा

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

Cheque Bounce मामलों के लिए Fast track अदालतों की सिफारिश

विधि मंत्री एचआर भारद्वाज को सौंपी 213 वीं रिपोर्ट में भारतीय विधि आयोग के अध्यक्ष डा. जस्टिस एआर लक्ष्मणन ने कहा है कि देश में इस वक्त चेक बाउंसिंग के 38 लाख केस (निगोशिएगल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138) लंबित हैं। इतनी बड़ी संख्या में केस लंबित होने के कारण देश-विदेश में व्यवसाय की विश्वसनीयता को ठेस पहुंची है। इन मामलों को तेजी से निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया जाए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस उद्देश्य से धारा 138 में संशोधन कर चैक बाउंसिग मामलों को तेजी से निपटाने का प्रबंध किया गया था, वह विफल हो गया है। आयोग मानता है कि मामलों को तेजी से निपटाया जाए, यह नागरिक का मौलिक आधिकार भी है। मामला लंबे समय तक लंबित रहने से ईमानदार नागरिकों और व्यावसायिक समुदायों को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।
देश की राजधानी दिल्ली में चैक बाउंसिग के पांच लाख 14 हजार 533 केस लंबित हैं। रोजाना लगभग ढाई हजार नए केस जुड़ रहे हैं जबकि इन केसों के निस्तारण का प्रतिशत बहुत कम है। दिल्ली की कुल अदालतों का दो तिहाई हिस्सा चैक बाउंसिंग केसों से ही जूझ रहा है।

कुछ कविताए

एक सफल एव जन जन के प्यारे कवि श्री अशोक चक्र्धर की कुछ कविताए :
बुनियादी सवाल :
कभी-कभी बच्चे
बाते करते है बुनियादी
सनेहा की एक बात ने
मेरी नीद भुला दी .
चौरासी के दंगो मे
जब कालौनी मे
मचा था हाहाकार,
सनेहा ने पुछा - पापा,
हम हिन्दु है या सरदार?
============
तेरा है :
तु गर दरिन्दा है तो ये मसान तेरा है,
अगर परिन्दा है तो आसमान तेरा है.
तबाहिया तो किसी और की तलाश मे थी.
कहा पता था उन्हें ये मकान तेरा है.
छलकने मत दे अभी अपने सब्र का प्याला,
ये सब्र ही तो असल इम्तेहान तेरा है.
भुला दे अब तो भुला दे कि भूल किसकी थी,
ना भूल प्यारे कि हिन्दोस्तान तेरा है.
न बोलना तो मत बोल ये तेरी मर्जी
है, चुप्पियो मे मुकम्मिल बयान तेरा है.
हो चाहे कोई भी तु, हो खडा सलीकेसे
ये फिल्मी गीत नहीं, राष्ट्रगान तेरा

क्या-क्या न सहे हमने सितम…

एक दिन दो पुराने दोस्त गधे बाजार में मिले। एक गधा बोला - यार तुम तो बहुत कमजोर हो गए हो। क्या तुम्हारा मालिक तुम्हें ठीक से खाने पीने को नहीं देता ?
दूसरे गधे ने ठंडी सांस भरकर कहा - हां दोस्त, खाने पीने को तो ठीक से मिलता ही नहीं है साथ ही काम भी बहुत करवाता है। मेरा मालिक सचमुच बहुत खराब आदमी है।
पहले गधे ने कहा - तो फिर ऐसे मालिक को तुम छोड़ क्यों नहीं देते ? किसी दिन मौका देखकर भाग जाओ न ?
दूसरा गधा - मैं भाग नहीं सकता ।
पहला गधा - पर क्यों ?
दूसरा गधा - मेरे मालिक की एक बहुत ही खूबसूरत बेटी है। जब भी वह उस पर नाराज होता है तो मेरी तरफ इशारा करके उससे कहता है कि ”देखना, एक दिन तेरी शादी मैं इस गधे से कर दूंगा” ……. अब यार, मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं ……

कुछ हिन्दी जगत से समाचार !

कुछ अच्छा मसाला मिला है एक चिठा में । अच्छा लगा की कुछ अच्छे लोग है जो अपना बहुमूल्य समय निकालकर कुछ हिन्दी भाषा के लिए कर रहे है । कोपी , पेस्ट करके दे रहा हु , आशा है के पसंद आएगा .

महेश भट्ट : फिल्मी सितारों का हिन्दी नहीं बोलना अपनी माँ को गिरवी रखने जैसाफिल्मी और टीवी दुनिया से जुड़ा हर सितारा न्यूयॉर्क टाईम्स में अपनी खबर और फोटो देखना चाहता है जबकि उसको नाम और पैसा हिन्दी के दर्शकों से मिलता है। आज हर सितारा अपनी शख्सियत और अपनी पहचान अंग्रेजी में बनाना चाहता है, आज फिल्म उद्योग में हिन्दी न जानना और गलत हिन्दी बोलना सम्मान की बात हो गई है। महेश भट्ट ने कहा कि इस अंग्रेजी मानसिकता से पूरा देश आज एक बार फिर गुलाम होता जा रहा है।- महेश भट्ट, २७ मई २००७चीनी हो या जापानी, अब समझे हिंदुस्तानीगूगल के भाषाई तोहफ़े जारी हैं. गूगल ट्रांसलेट के आज जारी नए अंतरपटल के जरिए हिंदी से केवल अंग्रे़ज़ी ही नहीं विश्व की कई लोकप्रिय भाषाओं से दुतरफा अनुवाद संभव हो गया है.यानी पूरी दुनिया की बात आप और आपकी बात पूरी दुनिया समझ सकती है. चीनी या जापानी में लिखे वेब पन्ने भी आपके लिए अब भैंस बराबर नहीं रहेंगे और आपका ब्लॉग अब किसी अरब, इतालवी, या फ्रेंच के लिए भी पल्ले से बाहर नहीं रहेगा. गूगल ने वाकई दुनिया छोटी कर दी है. उदाहरण के लिए, इस पन्ने को रुसी, फ्रांसीसी, जर्मन, स्पैनिश भाषाओं में देखिए. साथ ही चीनी साइट बाइदू हो या अरबी का अख़बार अशरक़ अल-अवसात, अब आप इन्हें अपनी भाषा में अपने जाने पहचाने अक्षरों में पढ़ सकते हैं. हिंदी पाठकों के लिए दुनिया के दरवाज़े इस कदर पहले शायद कभी नहीं खुले. अधपके अनुवाद का धुँधलका ज़रूर है, पर तस्वीर समझ में आ ही जाती है. अब सीएनएन के पन्ने को ऐसे हिंदी में देखने के लिए उनके हिंदी संस्करण का इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं.Lost in translation = अनुवाद में खो गए1 मई 2008 - गूगल ने हिंदी से अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ी से हिंदी मशीनी अनुवाद सेवा शुरू की. इसके जरिये किसी एक शब्द से लेकर किसी पूरे वेब पन्ने का भाषांतरण किया जा सकता है.मसलन, इस ब्लॉग को अंग्रेज़ी में पढ़िए. और जैसा कि मशीनी अनुवादों में अक्सर होता है, सिर खुजाने और ठहाका लगाने के लिए भी तैयार रहिए. पर आप चाहें तो अनुवादों को सुधारने में गूगल की मदद भी कर सकते हैं.एक दिन कम्प्यूटर के बिनाआदतें कितनी जल्दी गुलाम बना लेती हैं. हालत ये हो गई है कि अब एक दिन के लिए भी कम्प्यूटर (और इंटरनेट) बिल्कुल छोड़ देना लगभग खाना छोड़ने जैसा मुश्किल लगता है. पर मैंने कई बार ऐसा करके देखा है और पाया है कि वो दिन बड़ा बढ़िया गुजरता है. तीन मई को कुछ लोग फिर ऐसा करने का बहाना दे रहे है - मौका है शटडाउन दिवस का. चलिए, मेरा कम्प्यूटर तो बंद रहेगा. आप भी कहीं घूम आइए.हिंदुस्तानी जॉन डोअमेरिका में कानूनी मसलों में जब तक किसी पुरुष पक्ष की वास्तविक पहचान नहीं हो पाती उसे अदालती कारवाई में जॉन डो कहा जाता है. महिला पक्ष के लिए यह प्लेसहोल्डर है जेन डो. ये नाम अदालत से बाहर भी अनाम या आम व्यक्ति के तौर पर पहचान के लिए धड़ल्ले से बरते जाते हैं. मसलन, 1941 में फ़्रैंक कैप्रा ने एक फ़िल्म बनाई थी - मीट जॉन डो*, जोकि एक आम आदमी की कहानी थी (न देखी हो तो देख डालिए). इसके अलावा भी पॉपुलर कल्चर में इनका इस्तेमाल आम है.लगभग हर देश के अपने-अपने जॉन और जेन डो हैं. पर भारत में अभी हाल तक ऐसा कोई नाम प्रचलन में नहीं था. अदालतों में “नामालूम” शब्द से काम चलता आ रहा है. पर आखिर भारतीय कोर्टों ने भी अपना हिंदुस्तानी जॉन डो ढूँढ लिया लगता है। और वह है - अशोक कुमार (दादा मुनि, आप वैसे अमर न हुए होते तो ऐसे हो जाते). महिलाओं के लिए अभी तक कोई विशेष नाम प्रचलन में नहीं है. पर शायद जल्दी ही हो जाए. वैसे मीना कुमारी कैसा रहेगा? ख़ैर॥तो ब्लॉगर साहेबान, अगली बार अगर आपको अशोक कुमार के नाम से कोई टिप्पणी देता दिखे तो उसे एक अनजान, आम आदमी की प्रतिक्रिया मानिएगा, अपने पड़ोसी अशोक बाबू की नहीं.*90 के दशक में इस फ़िल्म की लगभग हूबहू हिंदी कॉपी जावेद अख़्तर की कलम से निकली थी. नाम रखा था मैं आज़ाद हूँ. पर लगता है भारतीय अदालतों को जावेद अख़्तर का सुझाव जँचा नहीं
कच्ची गाजर, पक्का गाजरहिंदी में लिंगभेद पर जो छोटा सा सर्वेक्षण हमने किया था उसके परिणाम बिना किसी हील-हुज्जत के सामने रख रहा हूँ. विश्लेषण और चर्चा का काम आप पर छोड़ता हूँ.सर्वे में पूछा यह गया था कि आप दही, गाजर, प्याज, आत्मा, चर्चा, धारा, ब्लॉग, ईमेल, और गिलास को पुल्लिंग की तरह प्रयोग करते हैं या स्त्रीलिंग की तरह. 19 से लेकर 60 वर्ष तक की आयु वाले कुल 39 लोगों ने अपने जवाब भरे. इनमें से 28 की मातृभाषा हिंदी थी, 11 की कोई और. गैर मातृभाषियों में 5 अमेरिका से, और 1-1 इटली, केरल, पंजाब, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, और उत्तराखंड से थे.मातृभाषियों के उत्तरहिंदी मातृभाषियों में सबसे अधिक दुविधा प्याज और ईमेल के लिंग के बारे में दिखी. प्याज को स्त्रीलिंग बताने वालों में 5 उत्तरप्रदेशी, 3 मध्यप्रदेशी, और 1 दिल्ली वाले थे. उत्तरप्रदेश के 35% और बिहार, उत्तराखंड, और महाराष्ट्र के सभी हिंदी मातृभाषियों ने गाजर को पुल्लिंग बताया; सभी मध्यप्रदेश और राजस्थान वालों ने स्त्रीलिंग. दिलचस्प बात है कि ईमेल को पुल्लिंग बताने वालों में भी बिहार, उत्तराखंड, और महाराष्ट्र के सभी हिंदीभाषी शामिल थे. आत्मा, चर्चा, धारा के स्त्रीलिंग होने पर लगभग सभी एकमत थे. इसी तरह ब्लॉग और गिलास के पुल्लिंग होने पर भी एक राय दिखी. राजस्थान के सभी हिस्सा लेने वाले आत्मा के अलावा सभी शब्दों पर एकमत दिखे. इसी तरह दिल्ली वालों में दही और प्याज को छोड़कर बाकी सभी के लिंगों पर सहमति दिखी.गैर-मातृभाषियों के उत्तरगैर हिंदी मातृभाषियों में ब्लॉग (पु.), प्याज (पु.), और धारा (स्त्री.) पर लगभग सहमति दिखी. आत्मा और धारा के स्त्रीलिंग होने पर सभी अमेरिकी एकमत थे. पंजाब और इटली के वोटों के अनुसार आत्मा पुल्लिंग है. गाजर केरल, महाराष्ट्र, और मध्यप्रदेश के वोटों में पुल्लिंग था तो उत्तराखंड, पंजाब, और इटली के वोटों में स्त्रीलिंग थी. दही को केरल और मध्यप्रदेश के गैर मातृभाषी वोटों ने स्त्रीलिंग माना. चार्ट यह रहा:अब देखें कि शब्दकोश क्या कहते हैं. फ़िलहाल प्लैट्स के हिसाब से देखते हैं. यह प्रतिष्ठित शब्दकोश ऑनलाइन भी उपलब्ध है. ध्यान रखने की बात यह है कि प्लैट्स 100 साल से ज़्यादा पुराना है और संभव है कि कुछ लिंग प्रयोग इन सालों में बदल गए हों. इसके अलावा ईमेल या ब्लॉग जैसे नए शब्द भी इससे नदारद होंगे. अगर आपके पास दूसरे शब्दकोश हों और उनमें भिन्न राय हों तो ज़रूर लिखें. तो देखें प्लैट्स महाशय क्या कहते हैं.दही - पुल्लिंग - H दही dahī, corr. धई dhaʼī [Prk. दहिअं; S. दधि+कं], s.m.गाजर - पुल्लिंग और स्त्रीलिंग - H गाजर gājar, (rustic) गाजिर gājir [Prk. गज्जरं; S. गर्जरं], s.f. & m.प्याज - स्त्रीलिंग - P piyāz, s.f. Onion;यहाँ देख सकते हैं कि न केवल शब्द का उच्चारण और वर्तनी बदल गये हैं, बल्कि अधिकतर हिंदीभाषी अब इसे पुल्लिंग बरतते हैं. एक रुचिकर बात - हिंदी का कांदा पुल्लिंग है और देखा गया है कि आयातित शब्दों के लिंग निर्धारण में पहले से मौजूद समानार्थक शब्द के लिंग का गहरा प्रभाव होता है.आत्मा - पुल्लिंग और स्त्रीलिंग - S आत्मा ātmā, s.m.f. चर्चा - शब्दार्थ भेद के अनुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग - H चर्चा ćarćā [S. चर्चकः, rt. चर्च्]चर्चा के दो अर्थ हैं. अपने पहले अर्थ अफ़वाह या “Popular talk” के मायनों में यह पुल्लिंग है. पर अपने दूसरे अर्थों बहस, विचार-विमर्श, या “mention” के लिए प्रयोग में यह स्त्रीलिंग है.धारा - स्त्रीलिंग - S धारा dhārā, s.f. धारा का पुल्लिंग प्रयोग उर्दू में आम है. आप सबने शकील बदायूँनी का वो गाना ज़रूर सुना होगा - तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा..तो ये थे हिंदी लिंगभेद सर्वेक्षण के परिणाम. सर्वेक्षण मेरे लिए मज़ेदार और ज्ञानवर्द्धक रहा. भाग लेने वालों का शुक्रिया. और जो बिना भाग लिए भाग लिए उन्हें तख़लिया.“यह पाकिस्तानी परंपरा नहीं है”फ़िल्मों की भाषा आम तौर पर एक बड़े व्यापक वर्ग को ध्यान में रखकर लिखी जाती है. ख़ासकर अगर विषय-वस्तु ऐतिहासिक या आंचलिक न हो. कोशिश यह दिखती है कि ऐसे लफ़्ज़ों का इस्तेमाल हो जो पूरे देश (और विदेश) के लोग समझ पाएँ. पर टीवी में दर्शकवर्ग अधिक केंद्रित होता है. और इसी वजह से टीवी की भाषा में आम तौर पर ऐसे शब्द मिल जाते हैं जो लक्षित क्षेत्र-विशेष के बाहर के लोगों के लिए अपरिचित होते हैं.पर अब सैटेलाइट के ज़माने में टीवी अपनी क्षेत्रीय प्रसारण सीमाओं से आज़ाद हो चुका है. हिंदी टीवी के कार्यक्रम अमेरिका, खाड़ी क्षेत्र, और पाकिस्तान में भी रुचि से देखे जाते हैं. और इस फैलाव के साथ ही फैल रहे हैं शब्द. इसमें कोई शक नहीं कि एक आम हिंदीभाषी की उर्दू शब्दावली बढ़ाने में फ़िल्मों और फ़िल्मी गानों का बहुत हाथ रहा है. अब ऐसा ही कुछ पाकिस्तान में हिंदी शब्दावली के लिए टीवी कर रहा है. एक दिलचस्प लेख में देवीरूपा मित्रा लिखती हैं,”A quick survey of Pakistanis, particularly the young and women in cities, showed that they were familiar with some of the more difficult Hindi words. “Sometimes, I find myself saying, ‘yeh Pakistani parampara nahin hai’ (this is not Pakistani tradition), which causes my husband to look at me strangely,” said Nadia Bano, a 32-year-old Islamabad housewife.[...]“On a Pakistani web forum debating the “Indian invasion” through TV soaps and films, a netizen wrote, “To learn the other dialect all a Paki need do is to watch STAR Plus and he’ll pick up Sanskrit vocabulary”.”He listed several words that he had picked up by watching Indian entertainment channels - parivar (family), parampara (tradition), prarthana (prayer), puja (worship), shanti (peace), dharam (religion), aatmahatya (suicide) and pradhan mantri (prime minister).”प्रश्नोत्तरंगजब तक इंटरनेट लोगों के घर तक, उनकी अपनी भाषा में, आसान रूप में नहीं पहुँचता (कभी पहुँचेगा भी?), तब तक के लिए एक उपाय - क्वेश्चन बॉक्स.परिकल्पना बड़ी सीधी है - लोग इसके जरिये एक ऑपरेटर को फ़ोन कर अपने सवाल पूछते हैं, ऑपरेटर इंटरनेट से उनके जवाब ढूँढ़ कर उन्हें वापस बताता है. ये बक्से प्रयोग के तौर पर अभी दिल्ली के पास, नोयडा के बाहर, दो कस्बों में लगाए गए हैं.कल कोरी डॉक्टरो ने बोइंग बोइंग पर इसका ज़िक्र किया है. मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि बड़े पैमाने पर इसका काम कर पाना मुश्किल होगा. यह तरीका शहरों या बड़े कस्बों के लिए मुझे बहुत कुशल नहीं लग रहा. आप क्या सोचते हैं?पढ़ाई में सबसे तेज़ बच्चे फिनलैंड केसत्तावन देशों में फैले क़रीब पन्द्रह साल के बच्चों की एक परीक्षा में फ़िनिश बच्चे दुनिया में सबसे तेज़ बच्चों में से पाए गए. ये टेस्ट विज्ञान, गणित, और रीडिंग (वाचन) विषयों में लिए गए थे. भारत उन देशों में शामिल नहीं था जहाँ ये परीक्षा ली गई पर बस्तों और माँ-बाप की आशाओं के बोझ से दबे भारतीय बच्चों की दशा से मुझे कोई ख़ास उम्मीद नहीं है. अमेरिकी विद्यार्थी विज्ञान में 29वें क्रम पर रहे और गणित में 35वें पर.यह जानना रुचिकर होगा कि फ़िनलैंड में हाइ-स्कूल के बच्चे रोज़ मुश्किल से आधे घंटे का होमवर्क पाते हैं और बच्चों का स्कूल में दाखिला 7 साल से पहले नहीं होता. वालस्ट्रीट जर्नल ने इस पर आज एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. उसमें से सिर्फ़ एक बात जो सोचने का मसाला देती है:One explanation for the Finns’ success is their love of reading. Parents of newborns receive a government-paid gift pack that includes a picture book. Some libraries are attached to shopping malls, and a book bus travels to more remote neighborhoods like a Good Humor truck.Finland shares its language with no other country, and even the most popular English-language books are translated here long after they are first published. Many children struggled to read the last Harry Potter book in English because they feared they would hear about the ending before it arrived in Finnish. Movies and TV shows have Finnish subtitles instead of dubbing.Posted by v9y at 3:50 PMपढ़ाई में सबसे तेज़ बच्चे फिनलैंड के2008-02-29T15:50:00-05:00v9yअंतरराष्ट्रीयरिपोर्टशिक्षासमाचारComments Links to this post Labels: , , , Wednesday, February 27, 2008दही खट्टा है या खट्टी?हाल में फ़्रेंच बोलने वालों पर किए गए एक छोटे सर्वेक्षण में पता चला कि फ़्रेंच भाषियों में शब्दों का लिंग पहचानने की प्रवृत्ति घट रही है. छप्पन लोगों पर किए गए इस परीक्षण में 14 वयस्क और 42 टीनएजर (13-19 वर्ष) थे जिनकी मातृभाषा फ़्रांसीसी थी. पचास स्त्रीलिंग संज्ञाओं का लिंग पूछने पर टीनएजर केवल 1 पर सहमत हो पाए.हिंदी में भी (फ़्रेंच की तरह ही) लिंग के अनुसार संज्ञाएँ दो तरह की होती हैं - पुल्लिंग या स्त्रीलिंग. हालाँकि अधिकतर हिंदी भाषियों को लिंग पहचानने में कोई खास समस्या नहीं आती, हिंदी सीखने वालों और हिंदी को दूसरी भाषा की तरह बोलने वालों के लिए यह पहचान हमेशा परेशानी की वजह रही है. विज्ञान और तकनीक संबंधी नए शब्दों के हिंदी में आने पर ये दुविधा मातृभाषियों में भी पैदा होती है. इसके अलावा कभी कभी आंचलिकता की वजह से भी लिंग प्रयोग अलग-अलग होते हैं.

इनटरनेट पर हिन्दी कैसे लिखे?

अगर आप हिन्दी में नही लिख पा रहे है तो हिन्दी का प्रचार प्रसार कैसे होगा?हिन्दी में लिखने के लिए दो लिंक है।

एक कौल आनलाइन है। http://uninagari.kaulonline.com/inscript.htm इसमें कई कीबोर्ड है । जिसे आप जानते हैं उसका प्रयोग करें।इसमें सीधे कंपोज करके मैटर को कापी करके पोस्ट करिए।

दूसरे को खोलकर फोनेटिक तरीके से हिंदी लिख सकते है । http://www.ankitjain.info/writeHindi.htm

अग
र आप हिंदी कंप्यूटर पर लिखना नहीं जानते तो इसका भी हल है। आप इस लिंक पर http://merekavimitra.blogspot.com/2007/07/blog-post_1474.html जाइए और निर्देशों के अनुसार हिंदी लिखना सीखिए। यहां शैलेष भारतवासी निशुल्क हिंदी लिखना सिखाते हैं। जो उचित लगे वह तरीका अपनाइए मगर अंतरजाल पर हिंदी लिखने के अभियान को आगे बढ़ाइए।

हम हिन्दी से दूर क्यो?

क्या हम अपनी भाषा से इतने दूर हो गए है की इसके लिए थोडी खोजबीन भी नहीकर सकते ?
ये मित्र पटल हिन्दी भाषा के लिए एक उन्नति का साधन होगा ।
यूनिकोड के समर्थको को इसके लिए एकजुट हो जाना चाहिए ताकि हिन्दी भाषा को एक उन्नत भाषा के रूप में विश्व पटल पर रखा जा सके ।
हम ज्यादा से ज्यादा हिन्दी का उपयोग करे और औरो को करवाने का संकल्प ले ।

कल के आगे

कल मैने आपको इस वेबसाईट के विकास के बारे मे कुछ बाताया था . आज ईसको पूरा करना चाहता था किंतु समयाभाव के कारण नही दे पा रहा हु . आशा है सभी सद्स्यगण क्षमा करेगे .

ऑनलाइन शॉपिंग.कॉम - सतर्क रहे

दैनिक भास्कर
कंप्यूटर पर क्लिक करो, आपका मनपसंद कैमरा आपके घर पर होगा। क्या यह कोई जादू है? नहीं, यह ऑनलाइन शॉपिंग है, जो अब धीरे-धीरे हमारे देश में भी लोकप्रिय होती जा रही है। इसे लेकर कई तरह की शंकाएं भी हैं, लेकिन उससे मिलने वाले लाभ इन शंकाओं पर भारी पड़ रहे हैं।
कैसे लाभदायक?
पहुंच बढ़ाए: आप चाहे मुंबई में हो या किसी छोटे-से गांव में, अगर इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध है, तो कहीं से भी शॉपिंग की जा सकती है। इसका एक फायदा यह भी है कि वे नवीनतम उत्पाद भी उपलब्ध हो जाते हैं जो प्राय: छोटे शहरों में काफी दिनों बाद मिल पाते हैं।
समय बचाए:
एक उत्पाद खरीदने के लिए विभिन्न दुकानों और शोरूमों पर जाकर दाम व फीचर्स को लेकर सर्वे करने की जरूरत नहीं। विभिन्न वेबसाइट्स पर तुलनात्मक अध्ययन से उत्पाद विशेष की तमाम जानकारी बेहद कम समय में उपलब्ध हो जाती है।
लाभ दिलाए :
कई वेबसाइट्स पर कंपनियां अपने उत्पादों पर डिस्काउंट भी देती है। हालांकि कुछ वेबसाइट्स घर पहुंच सेवा के बदले में डिलिवरी चार्ज भी लेती है, लेकिन फिर भी यह लाभ का सौदा है।
भीड़ से बचाए :
अक्सर खरीदी सप्ताहांत या अवकाश के दिन की जाती है जो भीड़-भाड़ भरे होते हैं। तो ऑनलाइन शॉपिंग न केवल भीड़-भड़क्के से बचाती है, बल्कि पार्किग के टेंशन से भी।
शंका और समाधान कैसी होगी गुणवत्ता?
कई लोग उत्पादों की गुणवत्ता के प्रति आशंकित रहते हैं। प्रतिष्ठित ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स ब्रांडेड कंपनियों को अपने साथ जोड़ती हैं। इनमें से कई वेबसाइट्स मनी बेक ऑफर भी देती हैं। इसलिए प्रतिष्ठित शॉपिंग वेबसाइट्स के जरिये खरीदी करने पर उत्पाद की गुणवत्ता के साथ कोई दिक्कत नहीं होती। इनकी नीतियों में साफ लिखा होता है कि कितने समय के भीतर उत्पाद को वापस करने पर वे मनी बैक कर देंगे।
इतना डिस्काउंट कैसे?
इन वेबसाइट्स पर मिलने वाले भारी डिस्काउंट ऑफर की वजह से भी लोगों को शंकाएं रहती हैं कि वाकई में उन्हें वही उत्पाद मिलेगा या नहीं, जिसका उन्होंने आर्डर दिया है।
दरअसल, ऑनलाइन शॉपिंग में डिस्ट्रीब्यूटर, सब-डिस्ट्रीब्यूटर जैसी बीच की तमाम कड़ियां खत्म हो जाती हैं। इसके अलावा शोरूम, वहां कार्यरत कर्मचारियों इत्यादि पर होने वाला खर्च भी बच जाता है। कंपनियां यही बचत अपने ग्राहकों को डिस्काउंट के रूप में उपलब्ध करवाती हैं।
सुरक्षित हैं आनलाइन डाटा?
सभी प्रतिष्ठित ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स ‘सेक्योर सॉकेट्स लैयर’ (एसएसएल) सिस्टम का इस्तेमाल करने लगी हैं। इससे क्रेडिट या डेबिट कार्ड संबंधी तमाम जानकारियां सुरक्षित रहती हैं। वेबसाइट्स की प्राइवेसी व सेक्युरिटी पॉलिसी में साफ लिखा होता है कि क्रेडिट कार्ड की सुरक्षा के लिए वे किस प्रणाली का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए थोड़ी सावधानी रखने पर यह सुरक्षित है।
यूं रखें सावधानी
नामी वेबसाइट्स को ही प्राथमिकता दें। वेबसाइट में जांच करें कि संपर्क करने के लिए पता व फोन नंबर दिया गया है या नहीं। ऐसी कोई जानकारी नहीं है तो वह वेबसाइट धोखा दे सकती है। उससे दूर रहें।
वेबसाइट पर फोन नंबर मिलने पर फोन करके देखें कि सामने से कोई जवाब मिलता है या नहीं। जवाब मिलने पर वेबसाइट की विश्वसनीयता की तस्दीक करें और फिर आगे की कार्रवाई करें। सुनिश्चित करें कि ऑनलाइन शॉपिंग में सुरक्षा मानकों का इस्तेमाल हो रहा है या नहीं।
डेबिट कार्ड के बजाय क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करें। विशेषज्ञों के अनुसार ऑनलाइन शॉपिंग में क्रेडिट कार्ड अधिक सुरक्षित है। यह सुनिश्चित करें कि वेबसाइट पर आपके आर्डर का कन्फर्मेशन मिल रहा है या नहीं। यदि नहीं मिल रहा है तो भावी खरीदी के प्रति सचेत रहें।
ऑनलाइन शॉपिंग सार्वजनिक कंप्यूटर से नहीं करें क्योंकि ऐसे कंप्यूटरों से भी आपके क्रेडिट कार्ड की सूचनाएं लीक हो सकती हैं।
40 फीसदी बढ़ोतरी हुई है पिछले दो साल के दौरान ऑनलाइन शॉपिंग में।
41 फीसदी हिस्सा है पुस्तकों का कुल वैश्विक ऑनलाइन शॉपिंग में। 70 फीसदी भारतीय ऑनलाइन शॉपिंग में हवाई जहाजों व रेलवे के टिकट खरीदते हैं।
84 फीसदी भारतीय ऑनलाइन शॉपिंग में क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं।
99 फीसदी दक्षिण कोरियाई इंटरनेट यूजर्स ऑनलाइन शॉपिंग में रुचि रखते हैं(स्रोत : नील्सन ग्लोबल ऑनलाइन सर्वे)
ध्यान दें
>> उत्पाद की खरीदी से पहले विभिन्न प्रतिष्ठित वेबसाइट्स पर उसकी कीमत के बारे में सर्वे जरूर करें।
>> टैक्स व अन्य शुल्क जांच लें। आमतौर पर सेल्स टैक्स व वैट को कीमत में बाद में जोड़ा जाता है। यह भी सुनिश्चित कर लें कि कहीं कोई छिपे हुए शुल्क तो नहीं हैं। इसके लिए हेल्पलाइन पर संपर्क करने से न कतराएं।
>> शिपिंग या डिलिवरी कॉस्ट को ध्यान रखें। अगर आप डिलिवरी जल्दी चाहते हैं तो उस बारे में भी वेबसाइट को अवगत करें।
>> कोई उत्पाद अभी उपलब्ध है या नहीं, इसके लिए वेबसाइट की हेल्पलाइन पर फोन करके पता कर लें। कई बार वेबसाइट जरूरी अपडेट नहीं करती है।>> वेबसाइट की प्राइवेसी व सेक्युरिटी पॉलिसी को ध्यान से पढ़ें। आपके डाटा की सुरक्षा सबसे पहले जरूरी है।
>> आर्डर को वेबसाइट कंफर्म करती है। स्क्रीन पर आए इस कन्फर्मेशन संदेश को सेव करें या प्रिंटआउट ले लें। यह ट्रांजेक्शन रिकार्ड उत्पाद नहीं मिलने या उसे लौटाने की दशा में काम आएगा।
>> पता करें कि मनी बैक या रिफंड पॉलिसी है या नहीं, ताकि उत्पाद पसंद नहीं आने पर आप उसे लौटा सके।
इनका कहना है..
इससे सीमाएं खत्म हो गई हैं। व्यक्ति पहले यह सोचकर मन-मसोसकर रह जाता था कि आखिर वह अच्छी किताबें कहां से खरीदें, लेकिन अब ऑनलाइन शॉपिंग से उसे आसानी से ये उपलब्ध हो जाती हैं। इससे किताबों के प्रति क्रेज भी बढ़ेगा। - विकास रखेजा, एमडी, मंजुल पब्लिशिंग हाउस (ऑनलाइन किताबें उपलब्ध करवाने वाली कंपनी)
यह मानना गलत होगा कि ऑनलाइन शॉपिंग में अच्छे ब्रांड के उत्पाद उपलब्ध नहीं करवाए जाते। होमशॉप 18 ने एप्पल, मोटोरोला, फिलिप्स, गोदरेज इत्यादि जैसे प्रतिष्ठित ब्रांड्स को अपने साथ जोड़ा है।- होमशॉप 18 (ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट)
मैंने हाल ही में ऑनलाइन शॉपिंग के जरिये एक कैमरा बुलवाया जिस पर काफी डिस्काउंट मिला है। मैंने शोरूमों में उसकी कीमत तो चेक नहीं की, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इतना डिस्काउंट कोई दुकानदार देता।- अंजलि अधिकारी ऑनलाइन खरीददार, भोपाल

आयात और व्यापार घाटे में खतरनाक छलांग

Oct 01, 11:19 pm
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। महंगे कच्चे तेल के चलते देश का आयात बिल बेहद खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है। नतीजतन व्यापार घाटा भी दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ता जा रहा है। आयात और व्यापार घाटे की इतनी तेज वृद्धि के चलते निर्यात में अच्छी खासी वृद्धि का उत्साह भी जाता रहा है। हाल के कुछ दिनों में डालर की मजबूती से साफ है कि आने वाले दिनों में भी आयात-निर्यात के आंकड़े अर्थव्यवस्था के अनुकूल नहीं रहेंगे।
उद्योग व वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक अगस्त, 2008 में आयात में डालर के हिसाब से 51.2 फीसदी की वृद्धि हुई है। जबकि पहले पांच महीनों [अप्रैल से अगस्त, 2008] में आयात में 37.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। अगस्त में आयात में 26.9 फीसदी और अप्रैल से अगस्त के दौरान 35 फीसदी की वृद्धि हुई है। अगर रुपये के हिसाब से बात करें तो अगस्त, 2008 में निर्यात में 33.5 फीसदी और आयात में 59 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। माना जा रहा है कि काफी समय बाद किसी एक महीन में आयात में 50 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है।
इसके चलते देश का व्यापार घाटा भी काफी तेजी से बढ़ रहा है। इस वर्ष अगस्त में व्यापार घाटा लगभग 14 अरब डालर का हो गया है जबकि अगस्त, 2007 में 7.19 अरब डालर का व्यापार घाटा था। अगर पूरे वित्त वर्ष की बात करें तो व्यापार घाटा 49 अरब डालर का हो जाता है। पिछले कई महीनों से व्यापार घाटे की स्थिति खराब करने में कच्चे तेल की भूमिका सबसे अहम रही है। इस बार भी कहानी कुछ दूसरी नहीं है। कच्चे तेल के आयात बिल में अगस्त, 2008 में 77 फीसदी की वृद्धि हुई है।

संभलकर करें लाइफ इंश्योरेंस का क्लेम

नई दिल्ली।मौत पर किसी का जोर नहीं चलता है। जब यह आती है, भावनात्मक रूप से नुकसान होने के साथ-साथ कई अन्य मुसीबतें भी खड़ी हो जाती हैं। यदि मरने वाले व्यक्ति ने कोई इंश्योरेंस पॉलिसी करवाई है तो उसके उत्तराधिकारी उसे कैसे क्लेम कैसे करे ? आइए जानें तरीका.
डॉक्यूमेंट एकत्र करें
पहले तो इंश्योरेंस कवर के सारे डॉक्यूमेंट एकत्रित करें। यदि नॉमिनी के पास वास्तविक पॉलिसी है तो क्लेम लेने में थोड़ी आसानी हो जाती है। यदि उसके पास पॉलिसी नहीं है तो पॉलिसी धारक के बारे में जानकारी जैसे कि उसका नाम, पॉलिसी नंबर या पॉलिसी जारी करने की तिथि इंश्योरेंस कंपनी को देनी होगी। इस पूरी प्रक्रिया में काफी वक्त खर्च होता है। इसलिए बेहतर है कि अपने नॉमिनी को डिटेल की पूरी जानकारी पहले ही मुहैया करवा दें।
एजेंट को बुलाएं
इसके बाद आप इंश्योरेंस एजेंट को बुलाएं। वह इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम लेने में आपकी सहायता करेगा। लेकिन यदि नॉमिनी को पता नहीं है कि इंश्योरेंस एजेंट कौन है तो उसे खुद ही कंपनी के पास जाकर क्लेम करना होगा। क्लेम फॉर्म में नॉमिनी को मृत्यु के दिन, जगह व कारण की जानकारी, इंश्योरेंस पॉलिसी डिटेल के साथ देनी होगी।
क्लेम फॉर्म के साथ सारे डॉक्यूमेंट भी लगाने चाहिए। सबसे ज्यादा जरूरी है डैथ सर्टिफिकेट, जोकि नगर पालिका द्वारा जारी किया जाता है। इसके साथ ही उस डॉक्टर के बयान की कॉपी भी लगानी जरूरी होती है जिसने मरने से पहले पॉलिसीधारक का इलाज किया था।
एक्सीडेंट:एफआईआर जरूरी
दूसरी तरफ यदि मृत्यु किसी एक्सीडेंट से होती है, तो पुलिस के समक्ष एक एफआईआर (फस्र्ट इनफॉरमेशन रिपोर्ट) दर्ज करवानी भी जरूरी है।एफआईआर की एक कॉपी क्लेम फार्म के साथ लगानी जरूरी है। इसके साथ ही पुलिस की इनक्वेस्ट रिपोर्ट, जिसमें मृत्यु के कारणों की जानकारी और एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट (यदि पोस्टमार्टम करवाया गया है) भी साथ में लगानी होगी। नॉमिनी को इस बात का भी प्रूफ देना होगा कि वही नॉमिनी है जिसका पॉलिसी में जिक्र है।
इस केस में फोटो आइडेंटिटी कार्ड की कापी डॉक्यूमेंट के साथ लगाई जा सकती है। क्लेम फाइल करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं है। नॉमिनी को केवल इस बात का प्रूफ देना होगा कि पॉलिसीधारक की मृत्यु के समय पॉलिसी चालू थी।
पॉलिसी लैप्स होने पर क्या
अगर पॉलिसीधारक ने प्रीमियम का भुगतान नहीं किया है तो उसकी पॉलिसी लैप्स हो जाएगी। अब ऐसी स्थिति में क्या होगा? टर्म इंश्योरेंस की दशा में इंश्योरेंस कंपनी क्लेम पर कोई कार्रवाई नहीं करेगी। लेकिन किसी दूसरी पॉलिसी में कंपनी थोड़ा नरम रुख लेकर चलती है। यदि पॉलिसीधारक ने लगातार तीन वर्ष तक प्रीमियम का भुगतान किया है और उसके बाद प्रीमियम का भुगतान नहीं कर पाया है तो भी इंश्योरेंस कंपनी थोड़ा नरम रुख लेकर चलती है। प्रीमियम और अन्य खर्च काटने के बाद सम-एश्योर्ड की राशि का भुगतान कर दिया जाता है।
इंश्योरेंस कंपनियां प्रीमियम
ड्यू तारीख से प्रीमियम का भुगतान करने के लिए 15 दिन का अतिरिक्त समय दे देती हैं। यदि इस बीच पॉलिसीधारक की मृत्यु हो जाती है तो भी पॉलिसी चालू रहती है और न भरे हुए प्रीमियम को काट कर सम-एश्योर्ड का भुगतान कर दिया जाता है।

घोटाला हो रहा है !

बैंकों में रहने वाला पैसा तकिये के अन्दर काला हो रहा है .
रातों में भी चलने वाले कारखानो पर ताला हो रहा है .
अब नथ्थू हलवाई विदेशी शर्मा जी का साला हो रहा है
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है !
बेरोजगार बिना रोजगार के जबरन उद्योगपति हो गए
जो सच्चे कर्मों से उद्योगपति हुए थे वह रोडपति हो गए
भाग्य को धन से बड़ा मान अमीर गरीबों के दम्पति हो गए
शेयर के चक्कर में सपनों में जीने वाले दुर्गति को गए
एक बार फिर से कापित्लिस्म का मुंह कला हो रहा है
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है!

आज कर्ज में डूबा है हर बुढ्ढा हर बच्चा
बड़े कारोबारी भी खा गए हैं गच्चा
फिर से सुनने मैं आया सदा जीवन सच्चा
उद्योगपति बेरोजगार को लगने लगा उचक्का
सपनों में भी सपनों पर ताला हो रहा है
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है !
~विनयतोष मिश्रा

कैसे रखें पीसी को सुरक्षित?

दिनोंदिन कम्प्युटर हमारी जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनता जा रहा है। वित्तीय हस्तांतरण से लगाए मित्रों से बातचीत व मनोरंजन के लिए हम इस पर निर्भर हैं। ऐसे में अगर आपके कम्प्युटर का डाटा गुम हो जाए या कोई वायरस नुकसान पहुँचा दे, तो आपकी परेशानी कितनी बढ़ जाएगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
ऐसे में कम्प्युटर की सुरक्षा का ख्याल रखना बेहद महत्वपूर्ण है। हमारे पास आपकी इस समस्या के लिए कुछ आसान सी टिप्स हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर आप अपने कम्प्युटर को सुरक्षित रख सकते हैं।
· नियमतः कम्प्युटर स्कैन करें- अपनी स्कैनडिस्क के प्रयोग द्वारा अपने कम्प्युटर को सप्ताह में कम से कम एक बार जरूर स्कैन करें। इससे आपकी हार्ड डिस्क में मौजूद एरर सही हो जाती हैं।
· एंटी वायरस इंस्टॉल करें- वायरस आपके सिस्टम को गंभीर क्षति पहुँचाने के लिए काफी हैं। इसलिए इनके बचाव के लिए अपने पीसी में एंटीवायरस सॉफ्टवेयर इंस्टॉल कर लें। न सिर्फ इंस्टॉल करें बल्कि समय-समय पर उन्हें स्कैन भी करते रहें।
· फायरवॉल इंस्टॉल करें- यदि आप नियमतः इंटरनेट सर्फ करते हैं तो आपके लिए फॉयरवॉल इंस्टॉल करना अत्यंत आवश्यक है। फाटरवॉल आपके सिस्टम पर अवांछित सामग्री को आने से रोकता है। साथ ही यदि आपकी जानकारी के बिना कोई प्रोग्राम आपके सिस्टम पर डाउनलोड हो रहा है, तो यह सॉफ्टवेयर आपको सचेत करने के साथ-साथ इसे रोकता है। आजकल विंडोज एक्सपी और विस्ता फायरवॉल के साथ ही उपलब्ध हैं इसलिए इनमें इसे इंस्टॉल करने की आवश्यकता नहीं होती है।
· डिस्क का क्लीन-अप करते रहें- समय-समय पर आप अपने सिस्टम की डिस्क से अतिरिक्त सामग्रियों को साफ करते रहिए। इससे आपकी डिस्क में काफी स्थान बचा रहेगा।
· इंटरनेट से कम से कम सामग्री डाउनलोड करें- बहुत से लोग इंटरनेट से विभिन्न सॉफ्टवेयर डाउनलोड करते हैं या फिर अवैधानिक तरीके से संगीत डाउनलोड करते हैं। इससे साइट्स के साथ स्पाइवेयर भी डाउनलोड हो जाता है।
· कम्प्युटर को साफ रखें- ध्यान रखें की आपके कम्प्युटर के भीतर धूल न लग जाए इसलिए अपने कम्प्युटर को नियमित रूप से साफ रखें।

कंप्यूटर की तकनीक से जुडे शब्द

इन्ऐक्टिव विंडो (inactive Window): कुछ परिचालन प्रणालियों में एक बार में स्क्रीन पर कई विडों खोली जा सकती हैं। उसमें वर्तमान सक्रिय विंडों को छोड़कर बाकी को निष्क्रिय विंडो कहा जाता है।
इनोक्यूलेट (Inoculate): वायरस के बचाव की क्रिया विधि को इनोक्यूलेट कहा जाता है। इसके अंतर्गत वायरस संबंधी जानकारियों को किसी प्रोग्राम में रखकर उसके उपयोग से संक्रमण से बचा जा सकता है।
इनपूट (Input): कम्प्यूटर में संसाधन हेतु जो सूचना प्रविष्ट की जाती है] उसे इनपूट कहा जाता है। कुंजी पटल] माउस] मॉडेम] टच स्क्रीन] डिस्क पर उपलब्ध फाइल आदि से कम्प्यूटर इनपूट प्राप्त कर सकते है।
इंस्टाल (Instal): किसी उपकरण या सॉफ्टवेयर को पहली बार इस्तेमाल में लाने के लिए तैयार करने को इंस्टाल या स्थापन कहते हैं।
अनुदेश चक्र(Instruction Cycle): वह चक्र जिसमें संसाधक मेमोरी से अनुदेश प्राप्त होने पर उसका कूटानुवाद कर उसे निष्पादित किया जाता हैं। इसे क्लॉक टिक्स की संख्या के रूप में नापा जाता है।
हैंग (Hang): कम्प्यूटर जगत की भाषा में हैंग का अर्थ होता है-कोई प्रतिक्रिया न दिखाना। ऐसा किसी प्रोग्राम का असामान्य तौर पर बंद होने या प्रोग्राम द्वारा किसी घटना के इंतजार करने के कारण हो सकता है।
हार्डवेयर (Hardware): किसी कम्प्यूटर में छूकर महसूस की जाने वाली सभी वस्तुएं हार्डवेयर कहलाती हैं। कम्प्यूटर प्रणाली के सभी अवयव] जिनमें मुद्रित परिपथ बोर्ड केन्द्रीय संसाधन इकाई] कुंजी पटल] कंसोल] मॉनिटर एवं प्रिंटर शामिल हैं] को हार्डवेयर कहा जाता है।
हार्ड डिस्क ड्राइव (Hard Disk Drive):यह एक प्रकार का उपकरण है] जिसमें चुंबकीय आवरण वाली डिस्क का समूह होता है] जिन्हें प्लैटर कहते हैं। ये आंकड़े या प्रोग्राम का संग्रह करते हैं।
हार्ड कॉपी (Hard Copy): इसे मुद्रित या लिखित प्रति भी कहा जाता है। यह कागज़ पर मुद्रित होती है। डिजिटल रुप की प्रति सॉफ्ट कॉपी कहलाती है।

हस्तलिपि का कम्प्यूटर युग में ……….

मेरी चिन्ता यह नहीं है कि, आने वाले समय में लोग हाथों से लिखना छोड़ देगें। या फिर ऐसा भी नहीं है कि लोगों ने हाथ से लिखना बन्द कर दिया है, आज भी हाथ से लिखा जा ही रहा है, फिर भी हाथ से लिखने की कला में जो ह्रास का परिदृश्य उभरकर सामने आ रहा है,कुछ हीदशक पहले तक शायदहीकिसीके वहमों-गुनान में रहा हो. यह हो सकता है कि यह मुददा अभी बहुत अधिक चिन्ता का कारण न हो, लेकिन यह ऐसा विषय है कि जिसे हम दरगुज़र नहीं कर सकते हैं। भाषा को संरक्षित करने की यह प्रकिक्रया धीरे-धीरे कम होती जा रही है। राजा से लेकर सामान्यजन तक सबके द्वारा प्रयोग की जाने वाली यह कला ने, आज नहीं तो कल संकट के घेरे में आने वाली है।हस्तलिपि अर्थात्‌ हाथ से लिखने का महत्त्व कौन नहीं जानता है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक की समस्त विद्याओं का सर्जन इन्हीं हस्तलिपियों के मध्यम से हुआ है। विभिन्न कलाओं के बीच हस्तलिपि का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन हस्तलिपियों की सहायता से उनके काल, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा साहित्य की स्थिति का ज्ञान होता है। इन्हीं हस्तलिखित लिपियों का शोधकार्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान है।सामान्यताः वह सभी लिपियाँ हस्तलिपि की कोटि में आती हैं, जिनको हाथ के द्वारा लिखा गया हो। पांडुलिपियाँ ऐसी ही लिपियाँ हैं, जो भोज पत्रों, पेड़ों की छालों, ताम्रपत्रों, पत्थरों, मिट्टी की गट्टियों तथा वस्त्रों पर लिखी जाती थीं। इन पाण्डुलिपियों के द्वारा भाषा और साहित्य के साथ इतिहास को जानने में सहायता मिलती है।जैसाकि हम जानते हैं कि वैदिक काल में रचा गया साहित्य हमें आज भी प्राप्त होता है, वह इन्हीं हस्तलिपियों के द्वारा ही रचा गया था, जो आज भी प्राप्य है।हस्तलिपि या यूँ कहें की हाथ के द्वारा लिखना भारत-वासियों ने कम से कम पाँच हजार वर्ष पहले तो लिखना सीख ही सीख लिया था। सिंधुघाटी, मोहन जोदड़ो, हड़प्पा की सभ्यता की खोज में प्राप्त हस्तलिपियाँ इसका प्रमाण हैं। तब से इनका विकास निरन्तर रूप् से जारी है। हिन्दी और भारत की कई भाषाओ के लिए प्रयुक्त नागरी लिपि आज इस स्थिति में है कि उसे हम संसार की किसी भी उन्नत से उन्नत से लिप के समामान्तर रख सकते हैं।आधुनिक युग में विज्ञान की देन कम्प्यूटर के आ जाने से हस्तलिखित प्रतियों का भविष्य संकट में आ गया है। इक्कीसवीं शताब्दी के अधिकांश व्यक्ति आज सीधे कम्प्यूटर पर लिख रहे हैं। जिससे की उनका समय नष्ट न हो तथा बचे हुए समय का उचित प्रयोग किया जा सके। परन्तु इन विद्वानों ने दूरदर्शिता से कार्य नहीं लिया, जिसके कारण हस्तलिपियों की दिनोदिन संख्या कम होती जा रही हैं। वह समय भी अब दूर नहीं है, जब इन हस्तलिपियों को पाना दुर्लभ हो जाऐगा।मशीनी युग में हर व्यक्ति अपने आप से एक यंत्र की भाँति कार्य ले रहा है। वह तनिक भी विराम नहीं लेना चाहता जिससे की स्प्रदा की दौड़ में कहीं वह पीछे न रह जाऐ।जिस हस्तलिखित प्रति को देखकर यह कहा जाता था कि ” वाह क्या मोती चुने हैं” अब दिखने के बजाय मुहावरे के रूप में ही जाने जाऐंगे। कक्षा में अच्छे सुलेख वाले विद्यार्थियों को गुरूजनों की ओर से अतिरिक्त अंक दिये जाते थे। जिनका सुलेख स्पष्ट तथा स्वच्छ नहीं होता, वह सदैव अवसाद एवं हीन भावना से ग्रस्त रहते है। वह हमेशा ऐसे व्यक्तियों की ताक में रहते हैं, जिनकी लिखावट स्पष्ट तथा सुलेख हो। परन्तु अब ऐसे व्यक्तियों को लज्जित होने की आवश्कयता नहीं है क्योंकि अब यह कार्य कम्प्यूटर नमः देवता के द्वारा मनचाहे रूप रंग तथा आकृति में करवाया जा सकता है।आज मनुष्य ने कलम के स्थान पर कम्प्यूटर के ” की-बोर्ड” को थाम लिया हैं। पहले जो कार्य कलम के द्वारा करना असम्भव था वही कार्य यह की-बोर्ड ” की सहायता ” से बड़ी सरलता से करता है।महात्मा गाँधी अगर इस युग में जीवित होते तो उन्हें आज इस बात का तनिक भी अफसोस नहीं होता की उनकी हस्तलिपि या सुलेख स्पष्ट नहीं है। बल्कि वह यह कार्य कम्प्यूटर महोदय से मनचाहे अक्षरों में करवाते। ” लियोनार्द्रो द बिंची और रवीन्द्रनाथ टैगोर” जैसे हस्तलिपि में मोती पिरोने वाले इन महापुरूषों की लिपि को सराहने वाले लोग अब कम ही मिलेंगे, क्योंकि यह कार्य तो अब कम्प्यूटर कर रहा है। कम्प्यूटर के युग में सुन्दरतापूर्ण सुलेख के कद्रदान अब कहाँ मिलेंगे।जी हाँ! यह आधुनिक युग का वह काल है जहाँ यह विचार महत्त्व नहीं रखता है कि आपकी हस्तलिपि कैसी है। एक ओर डाक्टरों की वह लिखावट है जिसे देखकर रोगी को एक बार फिर से रोग हो जाऐ की डाक्टर साहब ने लिखा क्या है। ऐसा प्रतीत होता है की जैसे किसी बनिये की दुकान का पर्चा हो। तो दूसरी ओर ऐसे व्यक्ति भी हैं कि जिनकी हस्तलिपि को देखकर कम्प्यूटर देवता भी लज्जा जाऐं । इन्हीं में से एक ” कमलेश्वर जी” हैं जिनकी सौन्दर्यपूर्ण लिखावट को सामने रखने पर ऐसा प्रतीत ही नहीं होता है की यह हाथ से लिखा है या किसी यंत्र के द्वारा।इधर कुछ समय से कार्यालयों में कलम तथा कागज का प्रयोग कम ही हो रहा है, क्योंकि हाथ से लिखने का चलन तो धीरे धीरे समाप्त सा होता जा रहा है। कार्यालयों में कागज तथा कलम का स्थान कम्प्यूटर महोदय ने ले लिया है। अगर यह कहा जाऐ की कम्प्यूटर ने हमारी कलम छीन ली है, तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी। अब यह मुहावरा भी कोई महत्त्व नहीं रखता है की ” अक्षर मोती के समान होने चाहिए”।भाषा शास्त्री इस बात से चिंतित हैं की अब हस्तलिपि का भविष्य क्या होगा। ऐसा भी नहीं है, कि हाथ से लिखने की विद्या समाप्त ही हो जाऐगी, परन्तु जब कोई नयी क्रांति होती है तो पुराने को समाप्त होना ही पड़ता है। अब यह लगता है कि आने वाले समय में फिर से एक बार हस्तलिपि का चलन आरभ्म होगा, और लोगों को फिर हाथ से लिखने की आवश्यकता पड़ेगी तब कलम जेब से ताकेगा नहीं, बल्कि पूर्व की भांति अग्नि उगलेगा।यह सत्य है कि अब लोग लिखते नहीं हैं, बल्कि अँगुलियों से बटन दबाते हैं और कम्प्यूटर स्वयं सुन्दर-सुन्दर वर्णों में लिखता जाता है। कम्प्यूटर और मोबाइल के इस युग में लोग सन्देश भेजने के लिए मोबाइल के सन्देशवाहक तथा कम्प्यूटर के ” ई-मेल” का प्रयोग करते हैं। चाहे गाँव हो या शहर सभी स्थानों पर अब इसका प्रयोग दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है। पहले की भांति लोग पत्र द्वारा सन्देश नहीं भेजते हैं, पत्रों का चलन तो ऐसा लगता है की गुज़रा हुआ जॉमाना हो, जिसे पढ़कर हमें आन्तरिक अनुभुति तथा सुख प्राप्त होता था, क्योंकि उसके साथ हमारी मनोभावनाएं जुड़ी हुई होती है, परन्तु इस वैज्ञानिक युग में यंत्रों के द्वारा सन्देश भेजने से वह सुख प्राप्त नहीं होता है, जो हाथ के द्वारा लिखे पत्रों को पढ़ कर होता था।आप माने चाहे न माने यह अंशतः सत्य है की आज दफ्‌तरों, कार्यालयों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को बगल वाले सज्जन की हस्तलिपि भी नहीं मालुम, क्योंकि वह अपना सारा दैनिक कार्य कम्प्यूटर के द्वारा करता है। सत्य से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है, जिस प्रकार मृत्यु सत्य है, उसी प्रकार यह भी सत्य है कि अब वह समय दूर नहीं है, जब कलम मात्र हस्ताक्षर करने के लिए ही जेब से बाहर निकलेगा। और तो और! श्रीमान कलम को यह कष्ट देने को भी आज का मनुष्य तैयार नहीं है। इसका भी उसने विकल्प ढूंढ लिया है, रबड़ की मोहरें, जितना चाहों उसे रगड़ो, दूसरी ओर कुछ बैंकों ने तो हस्ताक्षर करने का भी अपवाद विकल्प ढूंढ लिया है।अपराध और फॉरेसिक विज्ञान के बीच की यह हस्तलिपि का सम्बन्ध टूट जाऐगा। यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है जिसकी सहायता से अपराधी तक पहुँचा जा सकता है, परन्तु अब यह संम्भव नहीं क्योंकि अब यह कड़ी टूटती जा रही है। कम्प्यूटर के युग में व्यक्ति ने हाथ से लिखना छोड़ सा दिया है, और यह लिखने की कला समाप्त सी होती जा रही है।जिस प्रकार से एक अच्छा अभिनेता अपने अभिनय के द्वारा सब कुछ छुपा सकता है, परन्तु उसकी हस्तलिपि सारे भेद खोल देती है । कुछ विद्वानों का मानना है की हस्तलिपि सुन्दर या कुरूप होना वंशानुगत होती है। कुछ का मानना है की हाथ से लिखने का सम्बन्ध मष्तिक से होता है। मैं मानता हूँ की ऐसा नहीं है जो मनुष्य सुन्दर होते हैं तो उनकी लिखावट भी सुन्दर होती है, बल्कि ऐसे बहुत से उदाहरण उपलब्ध हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि हाथ से लिखने का सम्बन्ध सुन्दरता से नहीं होता है।अब प्रश्न यह उठता है की क्या हाथ से लिखने की कला समाप्त हो जाऐगी, तो मेरा ऐसा अनुमान है की कम्प्यूटर के युग में आज भी हाथ से लिखने वालों की अहमियत कम नहीं होगी, जो कम्प्यूटर के युग में हाथ के द्वारा लिखते हैं। अधिकांश व्यक्ति कम्प्यूटर पर ” की-बोर्ड” की सहायता से लिखते हैं, लेकिन जब वह वास्तविकता में लिखते हैं तो उनके लेखन में वह गति प्रखरता, सुन्दरता, तीव्रता नहीं आ पाती जो ” की-बोर्ड” के बटनों पर दबाने से आती है।कुछ व्यक्तियों का सुलेख इतना अस्पष्ट होता है कि उसे पढ़ना मुश्किल हो जाता है। हस्तलिपि स्पष्ट न होने के कारण भ्रमवश कुछ का कुछ पढ़ लिया जाता है, जिससे उसकी गम्भीरता तथा सार्थकता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।अन्त में मै इतना ही कहना चाहूँगा की भाषाविद्, भाषाशास्त्रियों तथा सरकार को हस्तलिपि को बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए और यह सोचना चाहिए की कहीं यह संस्कृति इतिहास के ग्रत में न छिप जाऐ। अन्यथा पाण्डुलिपियों का कोई महत्त्व नहीं रह जाऐगा।

यूनिकोड क्या है?

यूनिकोड क्या है?

यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नम्बर प्रदान करता है,
चाहे कोई भी प्लैटफॉर्म हो,
चाहे कोई भी प्रोग्राम हो,
चाहे कोई भी भाषा हो।
कम्प्यूटर, मूल रूप से, नंबरों से सम्बंध रखते हैं। ये प्रत्येक अक्षर और वर्ण के लिए एक नंबर निर्धारित करके अक्षर और वर्ण संग्रहित करते हैं। यूनिकोड का आविष्कार होने से पहले, ऐसे नंबर देने के लिए सैंकडों विभिन्न संकेत लिपि प्रणालियां थीं। किसी एक संकेत लिपि में पर्याप्त अक्षर नहीं हो सकते हैं : उदाहरण के लिए, यूरोपिय संघ को अकेले ही, अपनी सभी भाषाऒं को कवर करने के लिए अनेक विभिन्न संकेत लिपियों की आवश्यकता होती है। अंग्रेजी जैसी भाषा के लिए भी, सभी अक्षरों, विरामचिन्हों और सामान्य प्रयोग के तकनीकी प्रतीकों हेतु एक ही संकेत लिपि पर्याप्त नहीं थी।
ये संकेत लिपि प्रणालियां परस्पर विरोधी भी हैं। इसीलिए, दो संकेत लिपियां दो विभिन्न अक्षरों के लिए, एक ही नंबर प्रयोग कर सकती हैं, अथवा समान अक्षर के लिए विभिन्न नम्बरों का प्रयोग कर सकती हैं। किसी भी कम्प्यूटर (विशेष रूप से सर्वर) को विभिन्न संकेत लिपियां संभालनी पड़ती है; फिर भी जब दो विभिन्न संकेत लिपियों अथवा प्लैटफॉर्मों के बीच डाटा भेजा जाता है तो उस डाटा के हमेशा खराब होने का जोखिम रहता है।
यूनिकोड से यह सब कुछ बदल रहा है!
यूनिकोड, प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नंबर प्रदान करता है, चाहे कोई भी प्लैटफॉर्म हो, चाहे कोई भी प्रोग्राम हो, चाहे कोई भी भाषा हो। यूनिकोड स्टैंडर्ड को ऐपल, एच.पी., आई.बी.एम., जस्ट सिस्टम, माईक्रोसॉफ्ट, औरेकल, सैप, सन, साईबेस, यूनिसिस जैसी उद्योग की प्रमुख कम्पनियों और कई अन्य ने अपनाया है। यूनिकोड की आवश्यकता आधुनिक मानदंडों, जैसे एक्स.एम.एल., जावा, एकमा स्क्रिप्ट (जावा स्क्रिप्ट), एल.डी.ए.पी., कोर्बा 3.0, डब्ल्यू.एम.एल. के लिए होती है और यह आई.एस.ओ./आई.ई.सी. 10646 को लागू करने का अधिकारिक तरीका है। यह कई संचालन प्रणालियों, सभी आधुनिक ब्राउजरों और कई अन्य उत्पादों में होता है। यूनिकोड स्टैंडर्ड की उत्पति और इसके सहायक उपकरणों की उपलब्धता, हाल ही के अति महत्वपूर्ण विश्वव्यापी सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी रुझानों में से हैं।
यूनिकोड को ग्राहक-सर्वर अथवा बहु-आयामी उपकरणों और वेबसाइटों में शामिल करने से, परंपरागत उपकरणों के प्रयोग की अपेक्षा खर्च में अत्यधिक बचत होती है। यूनिकोड से एक ऐसा अकेला सॉफ्टवेयर उत्पाद अथवा अकेला वेबसाइट मिल जाता है, जिसे री-इंजीनियरिंग के बिना विभिन्न प्लैटफॉर्मों, भाषाओं और देशों में उपयोग किया जा सकता है। इससे डाटा को बिना किसी बाधा के विभिन्न प्रणालियों से होकर ले जाया जा सकता है।
यूनिकोड कन्सॉर्शियम के बारे में
यूनिकोड कन्सॉर्शियम, लाभ न कमाने वाला एक संगठन है जिसकी स्थापना यूनिकोड स्टैंडर्ड, जो आधुनिक सॉफ्टवेयर उत्पादों और मानकों में पाठ की प्रस्तुति को निर्दिष्ट करता है, के विकास, विस्तार और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इस कन्सॉर्शियम का वित्तपोषण पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से किया जाता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम में सदस्यता, विश्व में कहीं भी स्थित उन संगठनों और व्यक्तियों के लिए खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके विस्तार और कार्यान्वयन में सहायता करना चाहते हैं।
 

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