रविवार, 16 अगस्त 2009

भीड़ का दु:ख

युवती की तेज आती स्कूटर से वह वृद्ध टकरा गया। भीड़ लग गई। चोट दोनों को आई थी। हालात का जायजा ले रहे एक स्वयंसेवी ने वृद्ध को रिक्शे में डाला और अस्पताल की ओर चल पड़ा। रिक्शेवाले ने पूछा-
‘‘भाई साहब थोड़ा चोट तो उस महिला को भी आई थी, फिर आप इन्हें ले जा रहे हैं, क्या ये आपके रिश्तेदार हैं ?’’
‘‘नहीं, उसके लिए तो बहुतों की भीड़ है। अगर मैं उसे वहाँ से ले जाना का प्रयास करता तो भीड़ दु:खी हो जाती।’’

एक ई मेल से मिला ये .

5 comments:

रचना गौड़ ’भारती’ on 23 सितंबर, 2009 00:53 ने कहा…

भई वाह मजा आ गया। हमें भी पढें।

चाहत on 04 अक्तूबर, 2009 07:20 ने कहा…

अच्छा द्रष्टान्त है यह कमजोर और बेसाहारा लोगों को मदद करने की सीख देता है
जो हर इन्सान को करना चाहिए
धन्यवाद

Murari Pareek on 11 नवंबर, 2009 01:25 ने कहा…

bhai zabardast !!!

Kumar Ajay on 19 नवंबर, 2009 22:21 ने कहा…

wa sa wa

abhay lokre on 24 नवंबर, 2009 10:31 ने कहा…

मनोज कुमारजी
आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद् .मेरी यह खुजली अभी नयी है |करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान| धीरे धीरे सीख ही जाऊँगा |
आपके दोनों ब्लौग देखे |अच्छी और रोचक जानकारी है दोनों पर. |
ब्लाग पर अलग से टिपण्णी की सुविधा न होने के कारण इस प्रविष्टि के माध्यम से आपको लिख रहा हूँ
अभय लोकरे

 

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