रविवार, 6 दिसंबर 2009

कुछ शेर ओ शायरी

आज की इस पोस्ट में मै कुछ अपने पसंदीदा शेर दे रहा हु . ये शेर मेरे नही है बल्कि दूसरो के है, ये कैसे मेरे हाथ लग गए है, कहना मुश्किल है . पर इतना याद है कि करीबन १९९८ में जब एम् बी ऐ कि पड़ी कर रहा था तभी इनका शौक लगा. इधर दो तीन साल से ये छूट गया था. ये ऐसे शेर है जो मेरे जीवन में ख़ास जगह रखते है. पेश ऐ नज़र है : १. ठोकरे खा के जो सम्हलते है, वो निजाम ऐ जहा बदलते है, रौशनी के नए चरागों से , रूह  तपती है , जिस्म जलते है, रास्तो को हमे बदलना है, रास्ते खुद कहा बदलते है. २  हम अपने गम कि शिद्दत को कम नही करते, जरा...
 

सदस्यता

अपना ई-मेल टाईप करें:

Delivered by फीडबर्नर्

अनुसरणकर्ता