आज की इस पोस्ट में मै कुछ अपने पसंदीदा शेर दे रहा हु . ये शेर मेरे नही है बल्कि दूसरो के है, ये कैसे मेरे हाथ लग गए है, कहना मुश्किल है . पर इतना याद है कि करीबन १९९८ में जब एम् बी ऐ कि पड़ी कर रहा था तभी इनका शौक लगा. इधर दो तीन साल से ये छूट गया था. ये ऐसे शेर है जो मेरे जीवन में ख़ास जगह रखते है. पेश ऐ नज़र है :
१.
ठोकरे खा के जो सम्हलते है, वो निजाम ऐ जहा बदलते है,
रौशनी के नए चरागों से , रूह तपती है , जिस्म जलते है,
रास्तो को हमे बदलना है, रास्ते खुद कहा बदलते है.
२
हम अपने गम कि शिद्दत को कम नही करते,
जरा...
रविवार, 6 दिसंबर 2009
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