बुधवार, 3 दिसंबर 2008

हस्तलिपि का कम्प्यूटर युग में ……….

मेरी चिन्ता यह नहीं है कि, आने वाले समय में लोग हाथों से लिखना छोड़ देगें। या फिर ऐसा भी नहीं है कि लोगों ने हाथ से लिखना बन्द कर दिया है, आज भी हाथ से लिखा जा ही रहा है, फिर भी हाथ से लिखने की कला में जो ह्रास का परिदृश्य उभरकर सामने आ रहा है,कुछ हीदशक पहले तक शायदहीकिसीके वहमों-गुनान में रहा हो. यह हो सकता है कि यह मुददा अभी बहुत अधिक चिन्ता का कारण न हो, लेकिन यह ऐसा विषय है कि जिसे हम दरगुज़र नहीं कर सकते हैं। भाषा को संरक्षित करने की यह प्रकिक्रया धीरे-धीरे कम होती जा रही है। राजा से लेकर सामान्यजन तक सबके द्वारा प्रयोग की जाने वाली यह कला ने, आज नहीं तो कल संकट के घेरे में आने वाली है।हस्तलिपि अर्थात्‌ हाथ से लिखने का महत्त्व कौन नहीं जानता है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक की समस्त विद्याओं का सर्जन इन्हीं हस्तलिपियों के मध्यम से हुआ है। विभिन्न कलाओं के बीच हस्तलिपि का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन हस्तलिपियों की सहायता से उनके काल, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा साहित्य की स्थिति का ज्ञान होता है। इन्हीं हस्तलिखित लिपियों का शोधकार्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान है।सामान्यताः वह सभी लिपियाँ हस्तलिपि की कोटि में आती हैं, जिनको हाथ के द्वारा लिखा गया हो। पांडुलिपियाँ ऐसी ही लिपियाँ हैं, जो भोज पत्रों, पेड़ों की छालों, ताम्रपत्रों, पत्थरों, मिट्टी की गट्टियों तथा वस्त्रों पर लिखी जाती थीं। इन पाण्डुलिपियों के द्वारा भाषा और साहित्य के साथ इतिहास को जानने में सहायता मिलती है।जैसाकि हम जानते हैं कि वैदिक काल में रचा गया साहित्य हमें आज भी प्राप्त होता है, वह इन्हीं हस्तलिपियों के द्वारा ही रचा गया था, जो आज भी प्राप्य है।हस्तलिपि या यूँ कहें की हाथ के द्वारा लिखना भारत-वासियों ने कम से कम पाँच हजार वर्ष पहले तो लिखना सीख ही सीख लिया था। सिंधुघाटी, मोहन जोदड़ो, हड़प्पा की सभ्यता की खोज में प्राप्त हस्तलिपियाँ इसका प्रमाण हैं। तब से इनका विकास निरन्तर रूप् से जारी है। हिन्दी और भारत की कई भाषाओ के लिए प्रयुक्त नागरी लिपि आज इस स्थिति में है कि उसे हम संसार की किसी भी उन्नत से उन्नत से लिप के समामान्तर रख सकते हैं।आधुनिक युग में विज्ञान की देन कम्प्यूटर के आ जाने से हस्तलिखित प्रतियों का भविष्य संकट में आ गया है। इक्कीसवीं शताब्दी के अधिकांश व्यक्ति आज सीधे कम्प्यूटर पर लिख रहे हैं। जिससे की उनका समय नष्ट न हो तथा बचे हुए समय का उचित प्रयोग किया जा सके। परन्तु इन विद्वानों ने दूरदर्शिता से कार्य नहीं लिया, जिसके कारण हस्तलिपियों की दिनोदिन संख्या कम होती जा रही हैं। वह समय भी अब दूर नहीं है, जब इन हस्तलिपियों को पाना दुर्लभ हो जाऐगा।मशीनी युग में हर व्यक्ति अपने आप से एक यंत्र की भाँति कार्य ले रहा है। वह तनिक भी विराम नहीं लेना चाहता जिससे की स्प्रदा की दौड़ में कहीं वह पीछे न रह जाऐ।जिस हस्तलिखित प्रति को देखकर यह कहा जाता था कि ” वाह क्या मोती चुने हैं” अब दिखने के बजाय मुहावरे के रूप में ही जाने जाऐंगे। कक्षा में अच्छे सुलेख वाले विद्यार्थियों को गुरूजनों की ओर से अतिरिक्त अंक दिये जाते थे। जिनका सुलेख स्पष्ट तथा स्वच्छ नहीं होता, वह सदैव अवसाद एवं हीन भावना से ग्रस्त रहते है। वह हमेशा ऐसे व्यक्तियों की ताक में रहते हैं, जिनकी लिखावट स्पष्ट तथा सुलेख हो। परन्तु अब ऐसे व्यक्तियों को लज्जित होने की आवश्कयता नहीं है क्योंकि अब यह कार्य कम्प्यूटर नमः देवता के द्वारा मनचाहे रूप रंग तथा आकृति में करवाया जा सकता है।आज मनुष्य ने कलम के स्थान पर कम्प्यूटर के ” की-बोर्ड” को थाम लिया हैं। पहले जो कार्य कलम के द्वारा करना असम्भव था वही कार्य यह की-बोर्ड ” की सहायता ” से बड़ी सरलता से करता है।महात्मा गाँधी अगर इस युग में जीवित होते तो उन्हें आज इस बात का तनिक भी अफसोस नहीं होता की उनकी हस्तलिपि या सुलेख स्पष्ट नहीं है। बल्कि वह यह कार्य कम्प्यूटर महोदय से मनचाहे अक्षरों में करवाते। ” लियोनार्द्रो द बिंची और रवीन्द्रनाथ टैगोर” जैसे हस्तलिपि में मोती पिरोने वाले इन महापुरूषों की लिपि को सराहने वाले लोग अब कम ही मिलेंगे, क्योंकि यह कार्य तो अब कम्प्यूटर कर रहा है। कम्प्यूटर के युग में सुन्दरतापूर्ण सुलेख के कद्रदान अब कहाँ मिलेंगे।जी हाँ! यह आधुनिक युग का वह काल है जहाँ यह विचार महत्त्व नहीं रखता है कि आपकी हस्तलिपि कैसी है। एक ओर डाक्टरों की वह लिखावट है जिसे देखकर रोगी को एक बार फिर से रोग हो जाऐ की डाक्टर साहब ने लिखा क्या है। ऐसा प्रतीत होता है की जैसे किसी बनिये की दुकान का पर्चा हो। तो दूसरी ओर ऐसे व्यक्ति भी हैं कि जिनकी हस्तलिपि को देखकर कम्प्यूटर देवता भी लज्जा जाऐं । इन्हीं में से एक ” कमलेश्वर जी” हैं जिनकी सौन्दर्यपूर्ण लिखावट को सामने रखने पर ऐसा प्रतीत ही नहीं होता है की यह हाथ से लिखा है या किसी यंत्र के द्वारा।इधर कुछ समय से कार्यालयों में कलम तथा कागज का प्रयोग कम ही हो रहा है, क्योंकि हाथ से लिखने का चलन तो धीरे धीरे समाप्त सा होता जा रहा है। कार्यालयों में कागज तथा कलम का स्थान कम्प्यूटर महोदय ने ले लिया है। अगर यह कहा जाऐ की कम्प्यूटर ने हमारी कलम छीन ली है, तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी। अब यह मुहावरा भी कोई महत्त्व नहीं रखता है की ” अक्षर मोती के समान होने चाहिए”।भाषा शास्त्री इस बात से चिंतित हैं की अब हस्तलिपि का भविष्य क्या होगा। ऐसा भी नहीं है, कि हाथ से लिखने की विद्या समाप्त ही हो जाऐगी, परन्तु जब कोई नयी क्रांति होती है तो पुराने को समाप्त होना ही पड़ता है। अब यह लगता है कि आने वाले समय में फिर से एक बार हस्तलिपि का चलन आरभ्म होगा, और लोगों को फिर हाथ से लिखने की आवश्यकता पड़ेगी तब कलम जेब से ताकेगा नहीं, बल्कि पूर्व की भांति अग्नि उगलेगा।यह सत्य है कि अब लोग लिखते नहीं हैं, बल्कि अँगुलियों से बटन दबाते हैं और कम्प्यूटर स्वयं सुन्दर-सुन्दर वर्णों में लिखता जाता है। कम्प्यूटर और मोबाइल के इस युग में लोग सन्देश भेजने के लिए मोबाइल के सन्देशवाहक तथा कम्प्यूटर के ” ई-मेल” का प्रयोग करते हैं। चाहे गाँव हो या शहर सभी स्थानों पर अब इसका प्रयोग दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है। पहले की भांति लोग पत्र द्वारा सन्देश नहीं भेजते हैं, पत्रों का चलन तो ऐसा लगता है की गुज़रा हुआ जॉमाना हो, जिसे पढ़कर हमें आन्तरिक अनुभुति तथा सुख प्राप्त होता था, क्योंकि उसके साथ हमारी मनोभावनाएं जुड़ी हुई होती है, परन्तु इस वैज्ञानिक युग में यंत्रों के द्वारा सन्देश भेजने से वह सुख प्राप्त नहीं होता है, जो हाथ के द्वारा लिखे पत्रों को पढ़ कर होता था।आप माने चाहे न माने यह अंशतः सत्य है की आज दफ्‌तरों, कार्यालयों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को बगल वाले सज्जन की हस्तलिपि भी नहीं मालुम, क्योंकि वह अपना सारा दैनिक कार्य कम्प्यूटर के द्वारा करता है। सत्य से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है, जिस प्रकार मृत्यु सत्य है, उसी प्रकार यह भी सत्य है कि अब वह समय दूर नहीं है, जब कलम मात्र हस्ताक्षर करने के लिए ही जेब से बाहर निकलेगा। और तो और! श्रीमान कलम को यह कष्ट देने को भी आज का मनुष्य तैयार नहीं है। इसका भी उसने विकल्प ढूंढ लिया है, रबड़ की मोहरें, जितना चाहों उसे रगड़ो, दूसरी ओर कुछ बैंकों ने तो हस्ताक्षर करने का भी अपवाद विकल्प ढूंढ लिया है।अपराध और फॉरेसिक विज्ञान के बीच की यह हस्तलिपि का सम्बन्ध टूट जाऐगा। यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है जिसकी सहायता से अपराधी तक पहुँचा जा सकता है, परन्तु अब यह संम्भव नहीं क्योंकि अब यह कड़ी टूटती जा रही है। कम्प्यूटर के युग में व्यक्ति ने हाथ से लिखना छोड़ सा दिया है, और यह लिखने की कला समाप्त सी होती जा रही है।जिस प्रकार से एक अच्छा अभिनेता अपने अभिनय के द्वारा सब कुछ छुपा सकता है, परन्तु उसकी हस्तलिपि सारे भेद खोल देती है । कुछ विद्वानों का मानना है की हस्तलिपि सुन्दर या कुरूप होना वंशानुगत होती है। कुछ का मानना है की हाथ से लिखने का सम्बन्ध मष्तिक से होता है। मैं मानता हूँ की ऐसा नहीं है जो मनुष्य सुन्दर होते हैं तो उनकी लिखावट भी सुन्दर होती है, बल्कि ऐसे बहुत से उदाहरण उपलब्ध हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि हाथ से लिखने का सम्बन्ध सुन्दरता से नहीं होता है।अब प्रश्न यह उठता है की क्या हाथ से लिखने की कला समाप्त हो जाऐगी, तो मेरा ऐसा अनुमान है की कम्प्यूटर के युग में आज भी हाथ से लिखने वालों की अहमियत कम नहीं होगी, जो कम्प्यूटर के युग में हाथ के द्वारा लिखते हैं। अधिकांश व्यक्ति कम्प्यूटर पर ” की-बोर्ड” की सहायता से लिखते हैं, लेकिन जब वह वास्तविकता में लिखते हैं तो उनके लेखन में वह गति प्रखरता, सुन्दरता, तीव्रता नहीं आ पाती जो ” की-बोर्ड” के बटनों पर दबाने से आती है।कुछ व्यक्तियों का सुलेख इतना अस्पष्ट होता है कि उसे पढ़ना मुश्किल हो जाता है। हस्तलिपि स्पष्ट न होने के कारण भ्रमवश कुछ का कुछ पढ़ लिया जाता है, जिससे उसकी गम्भीरता तथा सार्थकता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।अन्त में मै इतना ही कहना चाहूँगा की भाषाविद्, भाषाशास्त्रियों तथा सरकार को हस्तलिपि को बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए और यह सोचना चाहिए की कहीं यह संस्कृति इतिहास के ग्रत में न छिप जाऐ। अन्यथा पाण्डुलिपियों का कोई महत्त्व नहीं रह जाऐगा।
 

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